शुभम नांदेकर, पांढुर्णा। जाम नदी के तट पर बरसते पत्थर, सर फोड़ती गोफन, टपकती लाशे और लंगड़े लूले होते लोग परंपरा के नाम पर गोटमार मेले में न जाने अब तक कितने घर परिवार उजाड़ दिए। कितनी पत्नियां बेवा हो गई। हर कोई कहता है बंद करों यह खूनी तमशा, लेकिन पोले के दूसरे दिन रोके नहीं रुकती यह विद्रुप परंपरा।
पांढुर्णा के जाम नदी के तट पर कल 3 सितंबर विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला आयोजित होने वाला है। इस मेले में परंपरा के नाम पर एक बार फिर खून बहाया जाएगा। इस मेले में लोग एक-दूसरे पर पत्थरों की बौछार करेंगे। पांढुर्णा के इस ऐतिहासिक मेले में हर साल हजारों भक्त मां चंडिका के मंदिर में श्रद्धा के साथ सिर झुकाने आते हैं, और इसके बाद गोटमार खेलने वाले खिलाड़ी इस खतरनाक खेल में हिस्सा लेते हैं।
600 से अधिक तैनात पुलिस बल
गोटमार मेले को लेकर प्रशासन ने सख्त इंतजाम किए हैं। चार जिलों की 600 से अधिक पुलिस बल तैनात कर दी गई है और दो जिलों की स्वास्थ्य टीम भी तैयार है। फिर भी, हर साल की तरह इस बार भी यह सवाल उठता है कि क्या यह खून-खराबे वाला मेला इस बार रोक पाना संभव होगा?
किवदंतियां और कहानियां
गोटमार मेले से जुड़ी अनेक किवदंतियां प्रचलित हैं। एक कहानी के अनुसार, जाम नदी के बीचो-बीच झंडेरूपी पलाश के पेड़ को गाड़ा जाता है और पत्थरबाजी का यह खेल खेला जाता है। वहीं, दूसरी कहानी प्रेमीयुगल की है, जिसके अनुसार एक युवक और युवती के प्रेम संबंधों के चलते इस मेले की शुरुआत हुई थी। इसी तरह की एक और कहानी में यह बताया जाता है कि भोंसला राजा के सैनिकों के युद्धभ्यास के रूप में इस मेले की शुरुआत हुई थी।
क्या होगा इस साल?
पिछले साल विधायक ने कानूनी कार्रवाई की अनदेखी करते हुए इस मेले में भाग लिया था। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या इस साल प्रशासन इस मेले को नियंत्रित कर पाएगा या फिर इस परंपरा के नाम पर बहते खून को कोई नहीं रोक पाएगा।
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