नई दिल्ली। भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार अपने कार्यकाल में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ लागू करेगी. इसके अलावा देश में जनगणना की प्रक्रिया जल्द शुरू होगी और चुनाव के बाद कम से कम समय में जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल कर दिया जाएगा.
जानकार सूत्रों ने एक न्यूज चैनल को बताया कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ ‘एक हकीकत’ होगा. उन्होंने कहा, “निश्चित रूप से इसे इसी कार्यकाल में लागू किया जाएगा.”
पिछले महीने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की वकालत की थी और तर्क दिया था कि बार-बार चुनाव होने से देश की प्रगति में बाधा आती है.
मोदी ने लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में कहा था, “देश को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के लिए आगे आना होगा.” उन्होंने राजनीतिक दलों से “लाल किले से और राष्ट्रीय तिरंगे को साक्षी मानकर देश की प्रगति सुनिश्चित करने” का आग्रह किया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के तीसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने पर सूत्रों ने कहा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर एकजुटता बाकी कार्यकाल के लिए भी जारी रहेगी.
उन्होंने पार्टियों से यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा कि राष्ट्रीय संसाधनों का इस्तेमाल आम आदमी के लिए किया जाए और कहा, “हमें ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के सपने को साकार करने के लिए आगे आना होगा.” ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ भाजपा द्वारा लोकसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में किए गए प्रमुख वादों में से एक है.
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में इस साल मार्च में एक उच्च स्तरीय पैनल ने पहले कदम के रूप में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की थी, जिसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाने थे.
इसके अलावा, विधि आयोग सरकार के सभी तीन स्तरों – लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगरपालिकाओं और पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के लिए 2029 से एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश कर सकता है और सदन में अविश्वास प्रस्ताव या अविश्वास प्रस्ताव जैसे मामलों में एकता सरकार के प्रावधान की सिफारिश कर सकता है.
कोविंद पैनल ने एक साथ चुनाव कराने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की है. इसने पैनल की सिफारिशों के क्रियान्वयन पर विचार करने के लिए एक ‘कार्यान्वयन समूह’ के गठन का प्रस्ताव रखा है.
पैनल ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की है, जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं होगी. हालांकि, इसके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयकों की आवश्यकता होगी जिन्हें संसद द्वारा पारित किया जाना आवश्यक होगा.