GPS based Toll System : देश में ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस) आधारित टोल कलेक्शन सिस्टम लागू हो गया है. सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने मंगलवार को इसके लिए नए नियम जारी किए.
इसके अनुसार, राष्ट्रीय राजमार्ग पर प्रतिदिन 20 किलोमीटर की दूरी तक जीएनएसएस से लैस निजी वाहनों से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा. 20 किलोमीटर से अधिक दूरी तय करने पर टोल लिया जाएगा.
इसका लाभ केवल उन्हीं वाहनों को मिलेगा, जो जीएनएसएस से लैस हैं. अभी इनकी संख्या कम है, इसलिए यह सिस्टम फिलहाल हाइब्रिड मोड पर काम करेगा. यानी, कैश, फास्टैग और ऑटोमेटिक नंबर प्लेट पहचान के जरिए टोल कलेक्शन जारी रहेगा. मैसूर और पानीपत हाईवे पर ट्रायल रन जीएनएसएस के जरिए टोल कलेक्शन के लिए बेंगलुरु-मैसूर हाईवे (एनएच-275) और पानीपत-हिसार (एनएच-709) पर ट्रायल रन किया गया.
इसके अलावा, अभी देश में कहीं भी जीएनएसएस के लिए कोई डेडिकेटेड लेन नहीं है. वाहनों को जीएनएसएस से लैस बनाने के लिए ऑन-बोर्ड यूनिट (ओबीयू) या ट्रैकिंग डिवाइस लगाना होगा.
आपको जो कुछ भी जानना चाहिए
हाईवे विशेषज्ञों के अनुसार, जीएनएसएस लागू होने के बाद जैसे ही वाहन हाईवे पर पहुंचेगा, उसका प्रवेश बिंदु टोल गेट होगा. हाईवे को छूते ही मीटर चालू हो जाएगा. स्थानीय लोगों को टोल गेट से 20 किलोमीटर तक जाने की अनुमति है. 21वें किलोमीटर से टोल की गिनती शुरू हो जाएगी.
हर टोल पर कुछ लेन जीएनएसएस के लिए समर्पित होंगी, ताकि केवल जीएनएसएस वाले वाहन ही उस लेन से गुजरें. नई व्यवस्था के लिए सभी वाहनों में जीएनएसएस ऑनबोर्ड यूनिट होना जरूरी है. यह अभी केवल उन नए वाहनों में उपलब्ध है, जिनमें आपातकालीन मदद के लिए पैनिक बटन है. यह व्यवस्था बाकी सभी वाहनों में लगानी होगी. फास्टैग की तरह ऑन-बोर्ड यूनिट (ओबीयू) भी सरकारी पोर्टल के जरिए उपलब्ध होंगी. इन्हें वाहनों में लगाया जाएगा. इससे जुड़े बैंक खाते से टोल कटेगा.
एक कार/ट्रक में ओबीयू लगाने की लागत करीब 4,000 रुपये है, जिसका वहन वाहन मालिक को करना होगा. जब सभी वाहनों में जीएनएसएस यूनिट लग जाएंगी और सभी लेन जीएनएसएस के लिए होंगी, तो सभी टोल बूथ सड़कों से पूरी तरह हट जाएंगे.
एनएचएआई को सालाना करीब 40,000 करोड़ रुपये का टोल राजस्व मिलता है. नई व्यवस्था पूरी तरह लागू होने के बाद इसके बढ़कर 1.4 लाख करोड़ रुपये होने की उम्मीद है. जीएनएसएस लागू करने के लिए अभिरुचि पत्र आमंत्रित किए गए थे. इन आवेदनों के आधार पर अब निविदा के लिए अनुरोध जारी किए जा रहे हैं.
जीएनएसएस क्या है?
देश के सभी राष्ट्रीय राजमार्गों की जीआईएस (भौगोलिक सूचना प्रणाली) मैपिंग की गई है. फास्टैग से अलग जीएनएसएस सैटेलाइट आधारित तकनीक पर काम करता है. इससे सटीक ट्रैकिंग होती है. यह टोल की गणना के लिए जीपीएस और भारत के जीपीएस एडेड जीईओ ऑगमेंटेड नेविगेशन (गगन) सिस्टम का उपयोग करता है.
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