वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। छत्तीसगढ़ के प्रवास पर पहुँचे प्रख्यात समाजवादी नेता और लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संरक्षक रघु ठाकुर ने लल्लूराम डॉट कॉम से इंटरव्यू में कई मुद्दों पर खुलकर बात की. उन्होंने आगामी महीनों में होने वाले दो राज्यों के चुनावों से लेकर छत्तीसगढ़ सरकार की नक्सल नीति, जातिगत जनगणना और राजनीतिक विचारधारा पर काफी कुछ कहा.
जम्मू-कश्मीर में बेमेल सरकार संभव
रघु ठाकुर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में इस बार चुनाव बेहद दिलचस्प होगा. जिस तरह के हालात नजर आ रहे हैं उससे तो यही लग रहा है कि बेमेल वाली सरकार बनेगी. देश में जिस तरह का गठबंधन सरकार है, उसका असर मौजूदा चुनाव में पड़ता हुआ दिख रहा है. वैसे भी भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर से राम माधव को भेज दिया है. इससे समझा जा सकता है कि भाजपा की रणनीति क्या है. राम माधव को धारा 370 हटाने के बाद वापस बुला गया था अब चुनाव से पहले फिर भेजा गया है. दिख तो यही रहा है कि जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को हटाने और इस धारा को वापस बहाल करने की मांग करने वाले दलों के बीच चुनाव के बाद गठबंधन हो सकता है.
महाराष्ट्र में पवार की भूमिका अहम
वहीं महाराष्ट्र चुनाव को लेकर कहना है कि महाराष्ट्र में में भाजपा की स्थिति मजबूत नहीं है. वहीं कांग्रेस गठबंधन भी सीएम चेहरे पर उलझ गया है. ऐसे में सबसे मजबूत भूमिका में पवार ही यहां होंगे. शरद पवार की राजनीति को समझना आसान नहीं है. दरअसल उद्धव ठाकरे चाहते हैं कि उन्हें सीएम उम्मीदवार पहले घोषित कर दिया जाए. लेकिन इसके लिए कांग्रेस तैयार नहीं है. ऐसे में पवार का रुख चुनाव के दौरान या बाद में क्या रहेगा यह पूरी तरह से अस्पष्ट है. भाजपा चुनाव तक इंतजार करेगी. संभव है कि चुनाव के बाद गठबंधन कुछ और ही नजर आए.
जातिगत जनगणना
मैं तो शुरू से जातिगत जनगणना के पक्ष में रहा हूँ. यह मुद्दा कोई आज का नहीं है. अभी तो इस मुद्दे को लेकर खूब राजनीति हो रही है. राहुल गांधी भी इस पर खूब जो दे रहे हैं, लेकिन मनमोहन सरकार में चुप रहे थे. राहुल गांधी को तब भी बोलना चाहिए था. क्योंकि 2011 में जनगणना के ठीक बाद जातिगत जनगणना हुई थी, लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसे सार्वजनिक नहीं किया था. फिलहाल तो यह चुनाव लाभ लेने का एजेंडा है, लेकिन जो भी जातिगत जनगणना होनी चाहिए. अच्छी बात है कि अब संघ को यह बात समझ में आ गई है. क्योंकि संघ के अंदर भी इसे लेकर खूब खलबली मची हुई थी.
विष्णुदेव साय और नक्सल नीति
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय अच्छे व्यक्ति हैं. सज्जन और सीधे हैं. लेकिन उन्हें मौजूदा राजनीति और सिस्टम में खुद को साबित करना पड़ेगा. क्योंकि सिस्टम का घेरा और राजनीतिक दबाव कुछ और ही करा देता है. इससे बचने की जरूरत है.
जहां तक राज्य की नक्सल नीति की बात है, तो यह समझना होगा कि सरकारें बदलती रही, नीतिया बदलती रही, लेकिन नक्सल मोर्चें पर ईमानदारी से काम नहीं हुआ. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बयान और अभियान की बात करे तो मैं उन्हें घोषणा करने वाले नेता या टारगेट फिक्स करने वाला ही कहूँगा. शाह जी कहीं जाते हैं टारगेट फिक्स कर देते हैं. लेकिन काम इससे नहीं बनने वाला है. क्योंकि अब नक्सलवाद में विचारधारा जैसी कोई बात नहीं है. नकस्लवाद में अपराधवाद हावी है. अंतर्राष्ट्रीय ड्रग माफियाओं की एंट्री नक्सवाद में हो चुकी है. ड्रग का काला कारोबार माओवादियों के बीच से हो रहा है. ऐसे में इसे खत्म किसी टारगेट को फिक्स करके नहीं किया जा सकता. लड़ाई लंबी चलेगी. अंतर्राष्ट्रीय स्तर अंकुश लगाना होगा. यही नहीं नक्सलवाद के नाम सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार की बात सामने आती है, इस पर सरकार का फोकस जरूरी है. मेरा यही मानना है कि आदिवासियों के बीच समतामूलक समाज से ही नक्सलवाद का समाधान संभव है.
समाजवाद की राजनीति
देश की राजनीति में अब विचारधारा की कमी है. सच्चाई तो यह है कि भाजपा में न तो राष्ट्रवाद है, न ही कांग्रेस में गांधीवाद है. समाजवादी पार्टी में भी कहीं कोई समाजवाद नहीं है. अगर कुछ है तो सब जगह केवल सत्ता है. सत्ता का मोह विचारधारा की राजनीति को खत्म कर चुकी है. लेकिन हमारी लड़ाई जारी है. हम तो पूरी तरह से समाजवाद के पक्षधर हैं. समतामूलक समाज ही हमारा उद्देश्य है.
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