हेमंत शर्मा, इंदौर। मध्य प्रदेश की मोहन सरकार की कैबिनेट में शासकीय विश्वविद्यालयों में ‘कुलपति’ का नाम बदलकर ‘कुलगुरु’ करने का फैसला पास किया गया था। इस फैसले के तहत राज्य के सभी शासकीय विश्वविद्यालयों में अब ‘कुलपति’ के पदनाम को ‘कुलगुरु’ से संबोधित किया जाना था। हालांकि, इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में इस नियम का उल्लंघन होता नजर आ रहा है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. रेनू जैन के चेंबर के बाहर जरूर ‘कुलगुरु’ लिखा गया है, लेकिन उनकी आधिकारिक गाड़ी पर अब भी पुराने पदनाम ‘कुलपति’ का इस्तेमाल किया जा रहा है।
मोहन कैबिनेट का फैसला
कुछ समय पहले डॉ मोहन यादव के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने एक अहम फैसला लिया था, जिसके तहत शासकीय विश्वविद्यालयों में ‘कुलपति’ के पदनाम को ‘कुलगुरु’ से बदला गया था। इस फैसले का उद्देश्य विश्वविद्यालयों में पारंपरिक शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देना और पदनामों में बदलाव लाना था, ताकि भारतीय परंपराओं के अनुरूप प्रशासनिक पदों को नया रूप दिया जा सके। इसके बाद राज्य के कई विश्वविद्यालयों ने इस फैसले को लागू भी किया।
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की अनदेखी
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में इस फैसले का पूरी तरह पालन नहीं किया गया है। डॉ. रेनू जैन की गाड़ी पर अभी भी ‘कुलपति’ का उल्लेख किया जा रहा है, जबकि कैबिनेट द्वारा पास किए गए प्रस्ताव के अनुसार यह बदलकर ‘कुलगुरु’ होना चाहिए था। यह स्थिति सवाल उठाती है कि क्या राज्य सरकार के फैसले को इंदौर विश्वविद्यालय प्रशासन ने नजरअंदाज कर दिया है? अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि मुख्यमंत्री इस मुद्दे पर क्या कदम उठाते हैं और क्या अन्य विश्वविद्यालयों में भी इस तरह की लापरवाही सामने आती है।
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