Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128

‘विदेश दौरा’

होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा.. राम ने जो रच रखा था, हुआ वहीं. ढेरों जतन के बाद भी सूबे के एक डिप्टी सीएम अमेरिका नहीं जा पाए. उनके विदेश दौरे में वीजा आड़े आ गया. वह चूक गए. मगर उनके एक विभाग के ईएनसी बाजी मार गए. अमेरिका तो नहीं, स्विट्जरलैंड की ठंडी वादियों में गोते लगा आए. बर्फ से लदे पहाड़ों पर बर्फ उछाल-उछालकर खूब खेला होगा. खैर, ईएनसी का विदेश दौरा होना कोई बड़ी बात नहीं है. अफसर अक्सर अपनी छुट्टियां विदेशों में मना आते है. कई बार तो गुपचुप ढंग से विदेश यात्रा हो जाती है. किसी को कानों कान खबर तक नहीं होती. रमन सरकार के दौर में एक ऐसा उदाहरण सामने आया था, जब लंदन की सड़कों पर घूमते हुए तब के एक सचिव उनसे टकरा गए थे. मुख्यमंत्री को अपने सामने पाकर सचिव भौचक रह गए थे. सचिव ने विदेश दौरे की अनुमति नहीं ली थी. शायद ईएनसी साहब ने सरकारी अनुमति से ही विदेश यात्रा की होगी. ईएनसी का विदेश दौरा दिलचस्प नहीं है. दिलचस्प कुछ है तो इस दौरे में शामिल लोग. कहते हैं कि भाजपा को सत्ता में आने से रोकने की जी तोड़ कोशिश कर चुके एक पूर्व नौकरशाह उनके साथ थे. यह सुना जाता रहा है कि पिछली सरकार में पर्दे के पीछे रहकर इस पूर्व नौकरशाह ने अपनी खूब चलाई. ये जांच एजेंसियों के राडार पर थे, मगर दिमागदार थे, बच निकले. नवाचार गढ़ने की इनकी दिलचस्पी को देखते हुए पिछली सरकार ने एक नया विभाग बना दिया था. नौकरशाही में अब भी इनके कई चेले हैं, जो अपनी जगह बनाए हुए हैं. ईएनसी साहब ने भी सोचा होगा. सरकार तो आती जाती रहती है. अगर कुछ बचा रहता है, तो वह है ‘दोस्ती’. इसे ही निभा लिया जाए.

‘सबक’

‘शराब’ के नशे में एक सरकार डूब गई. सरकारी दुकान से असली-नकली शराब बहती रही. सरकारी सौदागर रुपयों की नांव में सवार होकर बहते चले गए. घपले-घोटालों से बनी हजारों करोड़ रुपए की नाव खाई में गिर गई. अब उसके कलपुर्जे ढूंढ-ढूंढ कर जांच की जा रही है. कुछ घोटालेबाज सींखचों के उस पार हैं, कुछ इस पार रहकर उस पार का हाल देख रहे हैं. नई सरकार समझ रही है कि शराब का नशा सत्ता से बेदखल कर देता है. इसलिए कोशिश पूरे होशो-हवास में काम करने की है. शराब का पूरा सिस्टम बदल दिया गया है. काबिल अफसर लाए गए हैं. पिछले दिनों शराब दुकानों में फ्लैश सेलिंग (ओवररेटिंग) की शिकायत आई, तो अमला मुस्तैद हो गया. ताबड़तोड़ कार्रवाई की गई. अब इस पर नकेल कसने विभाग एक ‘मोबाइल एप’ बना रहा है. एप में शराब दुकानों का पूरा ब्यौरा होगा. किस दुकान में कौन सी ब्रांड की शराब है, उसकी कीमत क्या है? इस तरह की सभी जानकारी एप में मौजूद रहेगी. मदिरा प्रेमियों से सुझाव लेने का आप्शन भी इस एप में होगा. मसलन उन्हें कौन सी ब्रांड चाहिए? ओवररेटिंग तो नहीं हो रही? वगैरह-वगैरह. बहरहाल कुछ ‘सबक’ अच्छे होते हैं. समय रहते इनसे सीख ले ली जाए, तो गलतियों के दोहराव की गुंजाइश कम हो जाती है.

‘छोटी लिस्ट जल्द’

आईएएस-आईपीएस लाॅबी तबादले के इंतजार में बैठी है. अब-तब करते करते कई महीने गुजर गए. हालात जस का तस बने हुए हैं. जरूर छुट पुट तबादले होते रहे हैं. बहरहाल इस इंतजार के बीच खबर आ रही है कि आईएएस अफसरों की एक छोटी सूची सोमवार या मंगलवार को जारी होगी. एस एस बजाज के इस्तीफे के बाद से एनआरडीए अध्यक्ष का पद खाली है. चर्चा है कि आर संगीता को इसका अतिरिक्त प्रभार सौंपा जा सकता है. आबकारी और आवास एवं पर्यावरण विभाग की सचिव के साथ-साथ आबकारी आयुक्त, हाउसिंग बोर्ड अध्यक्ष, आरडीए अध्यक्ष, पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड का पोर्टफोलियो उनके हिस्से है. इसके अलावा सेंट्रल डेपुटेशन से लौटे रजत कुमार ने मंत्रालय में ज्वाइंनिंग दे दी है. बीजापुर और कोरबा जिले के कलेक्टर रह चुके रजत ने सीएम सचिवालय के साथ-साथ एनआरडीए, जनसंपर्क संचालक का ओहदा संभाला है. जाहिर है, सरकार उनके अनुभवों को देखते हुए बेहतर पोस्टिंग देगी. सेंट्रल डेपुटेशन से लौटे अमित कटारिया ज्वाइनिंग देने के बाद छुट्टी पर चले गए हैं. उनके लौटकर आने की स्थिति में उन्हें पोस्टिंग मिलेगी. डाॅ.रोहित यादव अक्टूबर में छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं. तब भी सरकार एक आदेश जारी करेगी. सूबे में साय सरकार के आने के बाद से सेंट्रल डेपुटेशन पर गए अफसरों का छत्तीसगढ़ लौटना जारी है. ऋचा शर्मा, सोनमणि बोरा, अविनाश चंपावत, मुकेश बंसल, अमरेश मिश्रा सेंट्रल डेपुटेशन से लौट चुके हैं.

‘नाराज’

निगम, मंडल और आयोग में नियुक्ति की चर्चा फिलहाल थम गई है. कुछ पाने की बांट जोहते बैठे नेता भी थक हार कर बैठ गए हैं. कहा जा रहा है कि सरकार और संगठन के बीच कई नामों को लेकर एक राय नहीं बन पा रही है. पहले पहल खबर आई थी कि करीब दर्जन भर नामों की एक लिस्ट जारी की जाएगी, लेकिन जब लिस्ट बनने की प्रक्रिया आगे बढ़ी, तब एक-एक कर कई नाम जुड़ते चले गए. संख्या बढ़ती देख प्रक्रिया रोक दी गई. संगठन नेता बताते हैं कि हर मंत्री और नेता अपने करीबियों को कुर्सी पर बिठाना चाहता है. अनुशंसाएं इतनी आ गई हैं कि किसे पद दें और किसे छोड़े? इस कश्मकश में दिन बीत रहे हैं. चुनाव में हाड़ तोड़ मेहनत करने वाले नेताओं की नाराजगी भी बढ़ रही है. ऐसे में अब नगरीय निकाय चुनाव के बाद पद देने का झुनझुना पकड़ाया गया, तब मानकर चलिए की नाराजगी फूट कर बाहर आ जाएगी. भाजपा में ओल्ड गार्ड वर्सेज न्यू गार्ड का वाॅर पहले से छिड़ रखा है. समय रहते हालात संभाल लेने में भी सबकी भलाई है.

‘ओल्ड गार्ड’

ओल्ड गार्ड की बात खुली है, तो यह बताना भी जरूरी है कि कई बार जैसा दिखता है, वैसा होता नहीं है. भाजपा में दशकों तक अपना वर्चस्व बनाकर चलने वाले नेता फिलहाल साइड लाइन है. यही पार्टी के ओल्ड गार्ड रहे हैं, मगर न्यू गार्ड यानी की नई लीडरशीप को आगे बढ़ता देख एक कसक इन नेताओं के मन में हिलोरे मारती होगी कि कम से कम एक आखिरी मौका उन्हें मिलना चाहिए था. खैर, पिछले दिनों रुलिंग पार्टी के दो सांसदों की लिखी चिट्ठी सामने आई. नाराजगी से भरी इस चिट्ठी के क्या मायने हो सकते हैं? राजनीति का ककहरा सीखने वाला भी यह बेहतर समझ सकता है. भीतरखाने क्या चल रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है. पुराने नेता, नए नेताओं के कामकाज को करीब से देख समझ रहे हैं. किसी दिन गुबार फूटने भर का इंतजार है. पिछले दिनों एक कार्यक्रम में विपक्ष के नेता ने एक पूर्व मंंत्री पर इन्हीं सब विषयों को लेकर तंज कसा. पूर्व मंत्री ने रामधारी सिंह दिनकर की कविता पढ़ रखी थी, तपाक से कह दिया- सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें आगे क्या होता है !

‘चंदा’

गणेश चंदा से सब नेता इन दिनों परेशान है. पिछले साल चुनाव था. नेताओं ने दिल खोल कर चंदे में बड़ी रकम लुटाई. घर बुला बुलाकर चंदे की रसीद कटवाई थी. विपक्ष के एक नेता को टिकट मिलने की उम्मीद थी, सो उनके घर चंदा लेने वालों का मजमा लगा होता था. टिकट मिली नहीं. दूसरे के लिए वोट मांग-मांग कर अपनी चप्पले घिसवाते नजर आते. चंदे की रसीद काटने वालों ने घर देख लिया था. हर पांच मिनट में घर की घंटी बजने लगी. ज्यादातर वक्त नेताजी दौरे पर रहते हैं. घर वाले दरवाजा खोल खोल कर परेशान हो गए. देर शाम या रात नेताजी जब घर पहुंचते तो घरवालों के मुंह में घुली चाशनी उनके हिस्से आती. थक हार कर उन्होंने एक तरकीब ढूंढी और घर के दरवाजे पर एक तख्ती टांग दी. तख्ती पर लिखा था, जिन्हें चंदा चाहिए. वह दफ्तर आएं. घर नहीं. वैसे गणेश चंदे की पर्ची काट-काट कर सभी नेताओं का हाल बेहाल है. चंदे की पर्ची उनकी जेब ढीली कर रही है. बहरहाल सियासत में असली नेता वहीं है, जो चंदे का पैसा भी अपनी जेब ढीली कर न दे. जेब से निकले पैसे को दूसरों से वसूल करने का हुनर रखने वाला ही असली नेता है.