देश की उच्च नौकरशाही में 45 पदों को लेटरल एंट्री के माध्यम से भरने का विज्ञापन जारी किया गया है, जिससे राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा हो रही है. विपक्षी दलों ने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा है कि यह बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान का उल्लंघन है क्योंकि इसमें आरक्षण को नजरअंदाज किया गया है. आरोप लगाया गया है कि सरकार लेटरल एंट्री के माध्यम से अपने पसंदीदा लोगों को लाएगी और SC, ST और OBC वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था को समाप्त कर देगी. UPSC के विज्ञापन में निदेशक, संयुक्त सचिव और उप-सचिव जैसे पदों पर भर्ती के लिए आवेदन मांगे गए हैं, जो 24 मंत्रालयों के लिए हैं. हालांकि, यह कदम नया नहीं है.

तेजस्वी यादव और राहुल गांधी ने इस फैसले को आरक्षण समाप्त करने की साजिश करार दिया है. वहीं, NDA के खेमे में भी इसके खिलाफ आवाज उठने लगी है. JDU और LJP (रामविलास) इस फैसले के विरोध में सामने आ गए हैं, जबकि चंद्रबाबू नायडू की TDP ने सरकार का समर्थन किया है. TDP का कहना है कि इस फैसले से प्रशासन की गुणवत्ता में सुधार होगा और आम लोगों तक सेवाएं पहुंचाना आसान हो जाएगा.

राहुल गांधी ने सरकार के इस कदम को दलितों और आदिवासियों के अधिकारों पर हमला बताया है. उनका कहना है कि BJP ने राम राज्य के मायने बदल दिए हैं और संविधान को खत्म करने की साजिश कर रही है. वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने कहा है कि सरकार विभागों में रिक्तियां भरने की बजाय आरक्षण को कमजोर करने की कोशिश कर रही है. SP और BSP ने भी इस फैसले का विरोध किया है.

पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1959 में इंडस्ट्रियल मैनेजमेंट पूल की शुरुआत की थी, जिसमें मंटोश सोढ़ी जैसे व्यक्तियों को सरकार में शामिल किया गया था. बाद में उन्हें भारी उद्योग का सचिव बना दिया गया. इसी प्रकार वी कृष्णामूर्ती, जिन्होंने BHEL, SAIL और PSU की जिम्मेदारी संभाली, और डीवी कपूर, जिन्होंने ऊर्जा, भारी उद्योग और रसायन मंत्रालयों का कार्यभार संभाला, भी लेटरल एंट्री के उदाहरण हैं.

इस बार, विपक्ष ने इस मुद्दे को आरक्षण से जोड़ दिया है, जिससे नौकरशाही में लेटरल एंट्री को लेकर नई बहस छिड़ गई है. खासतौर पर लोकसभा चुनाव के मद्देनजर, आरक्षण छीने जाने और संविधान बदलने की बात कहकर यूपी जैसे राज्यों में विपक्षी दल आक्रामक हैं. वहीं, सरकार ने लेटरल एंट्री के पुरानी परंपराओं की ओर ध्यान दिलाया है. पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया और सैम पित्रोदा जैसे लोग भी लेटरल एंट्री के माध्यम से नौकरशाही का हिस्सा बने थे और लंबे समय तक पदों पर बने रहे.

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लेटरल एंट्री क्या है और इससे कैसे बनते हैं टॉप नौकरशाह?

लेटरल एंट्री के माध्यम से उन लोगों को सरकारी सेवाओं में लिया जाता है, जो पारंपरिक काडर से नहीं आते, यानी जो IAS नहीं होते. इन व्यक्तियों को अपने पेशे का लंबा अनुभव होता है, और सरकार उस अनुभव का लाभ उठाने के लिए इन्हें लेटरल एंट्री के माध्यम से सेवाओं में शामिल करती है. टेलिकॉम, मीडिया, खनन जैसे कई क्षेत्रों में विशेष पेशेवर अनुभव की आवश्यकता होती है. ऐसे विभागों में पारंपरिक काडर की अपेक्षा, सरकार कई बार इंडस्ट्री के अनुभव रखने वाले लोगों को उचित मानती है. आमतौर पर लेटरल एंट्री के माध्यम से मिड लेवल और सीनियर लेवल पर अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है.

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UPA के बनाए आयोग ने दिया था लेटरल एंट्री का सुझाव

लेटरल एंट्री को औपचारिक रूप से पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में 2018 में शुरू किया गया था, लेकिन इससे पहले भी इसे बिना नाम दिए लागू किया जाता रहा था. लेटरल एंट्री के तहत अधिकारियों को सामान्यतः 3 से 5 साल के लिए हायर किया जाता है. आवश्यकता होने पर उन्हें सेवा विस्तार भी दिया जा सकता है. सरकारी सूत्रों के अनुसार, यूपीए सरकार ने 2005 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया था, जिसका चेयरमैन वीरप्पा मोइली थे. इस आयोग ने सिफारिश की थी कि कुछ पदों पर विशेषज्ञता की आवश्यकता है और वहां लेटरल एंट्री के माध्यम से नियुक्ति की जाए.

लेटरल एंट्री में आरक्षण क्यों नहीं मिलता?

आयोग ने कहा था कि प्राइवेट सेक्टर, अकादमिक जगत और पीएसयू में काम करने वाले अधिकारियों को लेटरल एंट्री के माध्यम से नौकरशाही में जगह दी जानी चाहिए. इस आयोग को भारतीय प्रशासनिक सेवा में सुधार के लिए सुझाव देने का जिम्मा सौंपा गया था. जहां तक आरक्षण का सवाल है, कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय का कहना है कि आरक्षण 13 बिंदुओं वाली रोस्टर पॉलिसी से मिलता है, जो काडर की भर्ती पर लागू होती है. लेकिन, किसी विभाग में यदि एक ही पद हो, तो वहां आरक्षण लागू नहीं हो सकता. विभागीय सूत्रों का कहना है कि लेटरल एंट्री के तहत 45 पद अलग-अलग मंत्रालयों में रखे जाने हैं, और ये सभी पद एकल हैं, इसलिए इनमें आरक्षण लागू नहीं हो सकता.