उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में आदमखोर भेड़ियों का आतंक लगातार जारी है. वन विभाग आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने के लिए सर्च ऑपरेशन चला रहा है तो वहीं दूसरी और भेड़ियों के हमले रुकने का नाम नहीं ले रहें हैं. 35 गांवों के लोग आदमखोर भेड़ियों के खौफ में रह रहे हैं।इन गांवों में लोग रात-रात भर जागकर घरों की रखवाली कर रहे हैं.
इन आदमखोर भेड़ियों के बढ़ते हमलों के बीच एक्सपर्ट कहते है कि भेड़िये बदला लेने वाले जानवर होते हैं. पिछले वर्षों की घटनाओं में देखा गया कि कैसे लोगों ने भेड़ियों के बच्चों को नुकसान पहुंचाया था और इसके बाद भेड़िए आदमखोर हो गए थे. एक्सपर्ट के मुताबिक यही पैटर्न इस बार भी देखा जा रहा है. एक्सपर्ट कहते हैं कि पूर्व में इंसानों द्वारा उनके बच्चों को नुकसान पहुंचाए जाने के बदले में ये हमले किए जा रहे हैं.
भारतीय वन सेवा (IFS) के रिटायर्ड अधिकारी और बहराइच जिले के कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग में वन अधिकारी रह चुके ज्ञान प्रकाश सिंह अपने तजुर्बे के आधार पर बताते हैं कि भेड़ियों में बदला लेने की प्रवृत्ति होती है और पूर्व में इंसानों द्वारा उनके बच्चों को किसी ने किसी तरह का नुकसान पहुंचाया होगा या फिर मार दिया गया होगा, जिसके बदले के तौर पर ये हमले हो रहे हैं.
50 से अधिक मासूम बच्चों की मौत हुई थी
वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के सलाहकार ज्ञान प्रकाश सिंह ने बताया कि 20-25 साल पहले जौनपुर और प्रतापगढ़ जिलों में सई नदी के कछार में भेड़ियों के हमलों में 50 से अधिक मासूम बच्चों की मौत हुई थी. पड़ताल करने पर पता चला था कि कुछ बच्चों ने भेड़ियों की एक मांद में घुसकर उनके दो बच्चों को मार डाला था. भेड़िया बदला लेता है और इसीलिए उनके हमले में इंसानों के 50 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई. बहराइच में भी कुछ ऐसा ही मामला लगता है.
जौनपुर और प्रतापगढ़ में भी था भेड़ियों का आतंक
ज्ञान प्रकाश सिंह ने कहा कि जौनपुर और प्रतापगढ़ में भेड़ियों के हमले की गहराई से पड़ताल करने पर मालूम हुआ कि अपने बच्चे की मौत के बाद भेड़िये काफी उग्र हो गए थे. वन विभाग के अभियान के दौरान कुछ भेड़िये पकड़े भी गए थे, लेकिन आदमखोर जोड़ा बचता रहा और बदला लेने के मिशन में कामयाब भी होता गया. हालांकि बाद में आदमखोर भेड़ियों को गोली मार दी गई थी और ऐसी घटनाएं बंद हो गई थीं.
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हमलों का पैटर्न
ज्ञान प्रकाश सिंह के मुताबिक, बहराइच के महसी तहसील के गांवों में हो रहे हमलों का पैटर्न भी कुछ ऐसा ही है. इसलिए इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि भेड़िए अपने बच्चों को नुकसान पहुंचाने या हत्या करने का बदला ले रहे हों. सिंह ने कहा कि इसी साल जनवरी-फरवरी में बहराइच में भेड़ियों के दो बच्चे किसी ट्रैक्टर से कुचलकर मर गए थे. तब उग्र हुए भेड़ियों ने हमले शुरू किए तो हमलावर भेड़ियों को पकड़कर 40-50 किलोमीटर दूर बहराइच के ही चकिया जंगल में छोड़ दिया गया. संभवतः यहीं थोड़ी गलती हुई.
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बदला लेने के लिए हमलों को दे रहे अंजाम
बकौल ज्ञान प्रकाश, चकिया जंगल में भेड़ियों के लिए नेचुरल स्टे नहीं है. ज्यादा संभावना यही है कि यही भेड़िये चकिया से वापस घाघरा नदी के किनारे अपनी मांद के पास लौट आए हों और बदला लेने के लिए हमलों को अंजाम दे रहे हों. सिंह ने कहा कि अभी तक जो भेड़िये पकड़े गए हैं वे सभी आदमखोर हमलावर हैं, इसकी उम्मीद बहुत कम है. हो सकता है कि एक आदमखोर पकड़ा गया हो, मगर दूसरा बच गया हो. शायद इसीलिए पिछले दिनों तीन-चार हमले हुए हैं.
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भेड़ियों में बदला लेने की प्रवृत्ति
बहराइच के प्रभागीय वन अधिकारी अजीत प्रताप सिंह का भी कहना है कि शेर और तेंदुओं में बदला लेने की प्रवृत्ति नहीं होती, लेकिन भेड़ियों में होती है. अगर भेड़ियों की मांद से कोई छेड़छाड़ होती है, उन्हें पकड़ने या मारने की कोशिश की जाती है या फिर उनके बच्चों को किसी तरह का नुकसान पहुंचता है, तो वे इंसानों का शिकार कर बदला लेते हैं.
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भेड़ियों को गोली मारने के आदेश
देवीपाटन के मंडलायुक्त शशिभूषण लाल सुशील ने कहा कि अगर आदमखोर भेड़िये पकड़ में नहीं आते हैं और उनके हमले जारी रहते हैं, तो अंतिम विकल्प के तौर पर उन्हें गोली मारने के आदेश दिए गए हैं. बहराइच के महसी तहसील क्षेत्र के लोग मार्च से भेड़ियों के आतंक का सामना कर रहे हैं.
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